शुक्रवार, 1 मार्च 2013

रेगिस्तान! रेगिस्तान!

रेगिस्तान! रेगिस्तान!
एक उजाड़ स्थान!

चहु ओर रेत ही रेत,
पेड़ो का कोई न नामो-निशान,
छोटी-छोटी झाड़ है उगती,
मौत का ये है दूसरा नाम.

पानी ढूँढने पे नहीं मिलता,
आसमान पे सूरज चमके,
चलनी करता तन गर्मी से,
दफ़न हो जाते है लोग,
बीच रेगिस्तान,
एक उजाड़ स्थान.

लगता है मानों जैसे,
यहाँ रहता कोई जादूगर,
दूर से देखने पर,
रेत भी पानी नज़र है आती,
प्यासा और तड़पता राही,
धोखे में राह भूल है जाता,
मिलता नहीं मुकाम,
एक उजाड़ स्थान.

रेगिस्तान! रेगिस्तान!
एक उजाड़ स्थान.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें