सच्चे सुख की प्राप्ति,
स्वदेश प्रेम से होती है,
यह इक ऐसी तपस्या है,
जिसे सबने करनी होती है,
इसकी अग्नि से निकलकर,
इन्सान देवता बन जाता है,
सफल होता है वो जीवन,
सेवा भाव जिसमे जग जाता है,
जिसमे न हो स्वदेश प्रेम,
वह एक पशु के समान है,
अपना कर्त्तव्य न निभाने वाला,
देश-प्रेमी नहीं, स्वार्थी इंसान है.
स्वदेश प्रेम से होती है,
यह इक ऐसी तपस्या है,
जिसे सबने करनी होती है,
इसकी अग्नि से निकलकर,
इन्सान देवता बन जाता है,
सफल होता है वो जीवन,
सेवा भाव जिसमे जग जाता है,
जिसमे न हो स्वदेश प्रेम,
वह एक पशु के समान है,
अपना कर्त्तव्य न निभाने वाला,
देश-प्रेमी नहीं, स्वार्थी इंसान है.