गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

स्वदेश-प्रेम

सच्चे सुख की प्राप्ति,
स्वदेश प्रेम से होती है,
यह इक ऐसी तपस्या है,
जिसे सबने करनी होती है,
इसकी अग्नि से निकलकर,
इन्सान देवता बन जाता है,
सफल होता है वो जीवन,
सेवा भाव जिसमे जग जाता है,
जिसमे न हो स्वदेश प्रेम,
वह एक पशु के समान है,
अपना कर्त्तव्य न निभाने वाला,
देश-प्रेमी नहीं, स्वार्थी इंसान है.

प्रजातंत्र

जनता के लिए,
जनता के द्वारा,
यही प्रजातंत्र है,
जनता चुनती है अपने प्रतिनिधि,
देश पे करते शासन है.

यह जनता के प्रतिनिधि,
नीतियाँ बनातें है,
इनका सञ्चालन करके,
देश को उन्नति दिलाते है.

प्रजतांतर प्रणाली में,
सच्चा सुख,
सच्ची शांति,
पूर्ण स्वंत्रता,
पूर्ण अधिकार,
आर्थिक समता,
और मिलता है विकास.

प्रजन्त्रिक शासन में,
कोई बड़ा नहीं,
कोई छोटा नहीं,
जाती-रंग के आधार पे,
इंसानों में अंतर नहीं.

भ्रष्टाचार

आज़ादी के बाद,
हमारे हाथ,
आई देश की कमान,
पंचवर्षीय योजनायें बनी,
पर विकास हुआ बहुत कम,
इसका मूल कारण है यही,
भ्रष्टाचार, मिलावट और जमाखोरी.

यह देश उन्नति में बाधक है,
समाज के लिए घातक है,
हर व्यक्ति की हानि होती है,
विश्वास टूटता है,
अच्छाई ख़तम होती है.

हमें इस भष्टाचार के वृक्ष को,
समाज से उखाड़ फेकना है,
अच्छे सिद्धांत अपनाकर,
स्वच्छ समाज का निर्माण करना है.

मुल्यावृधि

मुल्यावृधि अनाहुत अतिथि के समान,
हमारे जीवन में आकर बैठ गई,
जर्जर कर दिया, समाज के ढांचे को,
इस महंगाई ने.

टूट गई है सबकी कमर,
कठिन हो गई है जीवन की डगर,
बढती कीमत,
बड़ते कर,
उतना ही वेतन है मगर,
गरीब होते जाएँ गरीब,
अमीरों को नहीं है डर.
आर्थिक स्तिथि है कमजोर हमारी,
ऋण ले के हमने है सुधारी,
मुल्यावृधि को रोको,
इसमें सबका कल्याण,
पुरे समाज के विकास का,
येही एक समाधान.