शुक्रवार, 1 मार्च 2013

रेगिस्तान! रेगिस्तान!

रेगिस्तान! रेगिस्तान!
एक उजाड़ स्थान!

चहु ओर रेत ही रेत,
पेड़ो का कोई न नामो-निशान,
छोटी-छोटी झाड़ है उगती,
मौत का ये है दूसरा नाम.

पानी ढूँढने पे नहीं मिलता,
आसमान पे सूरज चमके,
चलनी करता तन गर्मी से,
दफ़न हो जाते है लोग,
बीच रेगिस्तान,
एक उजाड़ स्थान.

लगता है मानों जैसे,
यहाँ रहता कोई जादूगर,
दूर से देखने पर,
रेत भी पानी नज़र है आती,
प्यासा और तड़पता राही,
धोखे में राह भूल है जाता,
मिलता नहीं मुकाम,
एक उजाड़ स्थान.

रेगिस्तान! रेगिस्तान!
एक उजाड़ स्थान.

समंदर किनारे


मै बैठा था उफनते समंदर,
के रेतीले तट पे,
तन सिहर उठा जब,
छुआ ठंडी हवा के झोके ने.

चारो तरफ छाया था,
घनघोर अँधेरा,
समुन्दर की लहरों ने,
कर दिया मुझे गीला.

पक्षी चहचहा रहे थे,
हजारो सीप थे तट पे,
नारियल के वृक्ष थे खड़े,
हजारों की संख्या में.

मेरे जीवन का यह सबसे हसीन पल था,
वह एक पल, इक वर्ष के समान था.

भूत

भूत का नाम सुनते ही हमारे हाथ-पाँव थराए,
कभी है डरते, कभी किसी को डराए,
कमरे में अँधेरा देख, मन है डरता,
लगता जैसे कमरे में, भूत तांडव है करता,
मरता क्या न करता, कमरे में जाना ही पड़ता.

डरावनी फिल्म देखने के बाद,
मेरी जान आफत में है पड़ी,
हर वक़्त नज़रों के सामने,
एक भूतनी है खड़ी.

किसान

एक आदर्श इंसान है,
कोई और नहीं, वो किसान है,
खेत में जब यह उतरता,
खून-पसीना एक है करता,
हम उनके लिए कुछ न कर पाते,
जो खेती कर अपना जीवन है बिताते,
देश उन्नति में किसान का बड़ा काम है,
यह एक स्वावलंबी इंसान है.
एक आदर्श इंसान है,
कोई और नहीं, वो किसान है.

समय्निष्ठा

समय का सदुपयोग करो,
जीवन सफल हो जायेगा,
इक इक पल अमूल्य है,
यही सत्य है,
इक पल जो तू गवायेगा,
बाद में पछतायेगा.

हर कार्य समय पे करो,
कठिन से कठिन,
आसानी से हो जायेगा,
वक़्त के पाबन्द बनो,
तुमपे लोग विश्वास करे,
अपने अन्दर आत्म विश्वास पायेगा.

परोपकार

परोपकार वो भावना है,
वो दान सच्चा है,
जिसमे ये नहीं होती,
वह व्यक्ति अधूरा, कच्चा है.

परोपकार करो,
तन मन धन से करो,
कर्तव्य समझ करो,
यश के लिए न करो,
सुख, शांति, स्नेह मिलेगा,
जीवन परिपूर्ण होगा,
श्रद्धा के पत्र बनोगे,
आनंद को प्राप्त करोगे,
येही सबसे बड़ा धर्म है,
इसी का पालन करो.

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

स्वदेश-प्रेम

सच्चे सुख की प्राप्ति,
स्वदेश प्रेम से होती है,
यह इक ऐसी तपस्या है,
जिसे सबने करनी होती है,
इसकी अग्नि से निकलकर,
इन्सान देवता बन जाता है,
सफल होता है वो जीवन,
सेवा भाव जिसमे जग जाता है,
जिसमे न हो स्वदेश प्रेम,
वह एक पशु के समान है,
अपना कर्त्तव्य न निभाने वाला,
देश-प्रेमी नहीं, स्वार्थी इंसान है.

प्रजातंत्र

जनता के लिए,
जनता के द्वारा,
यही प्रजातंत्र है,
जनता चुनती है अपने प्रतिनिधि,
देश पे करते शासन है.

यह जनता के प्रतिनिधि,
नीतियाँ बनातें है,
इनका सञ्चालन करके,
देश को उन्नति दिलाते है.

प्रजतांतर प्रणाली में,
सच्चा सुख,
सच्ची शांति,
पूर्ण स्वंत्रता,
पूर्ण अधिकार,
आर्थिक समता,
और मिलता है विकास.

प्रजन्त्रिक शासन में,
कोई बड़ा नहीं,
कोई छोटा नहीं,
जाती-रंग के आधार पे,
इंसानों में अंतर नहीं.

भ्रष्टाचार

आज़ादी के बाद,
हमारे हाथ,
आई देश की कमान,
पंचवर्षीय योजनायें बनी,
पर विकास हुआ बहुत कम,
इसका मूल कारण है यही,
भ्रष्टाचार, मिलावट और जमाखोरी.

यह देश उन्नति में बाधक है,
समाज के लिए घातक है,
हर व्यक्ति की हानि होती है,
विश्वास टूटता है,
अच्छाई ख़तम होती है.

हमें इस भष्टाचार के वृक्ष को,
समाज से उखाड़ फेकना है,
अच्छे सिद्धांत अपनाकर,
स्वच्छ समाज का निर्माण करना है.

मुल्यावृधि

मुल्यावृधि अनाहुत अतिथि के समान,
हमारे जीवन में आकर बैठ गई,
जर्जर कर दिया, समाज के ढांचे को,
इस महंगाई ने.

टूट गई है सबकी कमर,
कठिन हो गई है जीवन की डगर,
बढती कीमत,
बड़ते कर,
उतना ही वेतन है मगर,
गरीब होते जाएँ गरीब,
अमीरों को नहीं है डर.
आर्थिक स्तिथि है कमजोर हमारी,
ऋण ले के हमने है सुधारी,
मुल्यावृधि को रोको,
इसमें सबका कल्याण,
पुरे समाज के विकास का,
येही एक समाधान.